मुक्ति
तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा पत्थर, की निकलो फिर, गंगा-जल-धारा! गृह-गृह की पार्वती! पुनः सत्य-सुन्दर-शिव को सँवारती उर-उर की बनो आरती! भ्रान्तों की निश्चल ध्रुवतारा! तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा!

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