मद भरे ये नलिन
मद - भरे ये नलिन - नयनमलीन हैं; अल्प - जल में या विकल लघु मीन हैं? या प्रतीक्षा में किसी की शर्वरी; बीत जाने पर हुये ये दीन हई? या पथिक से लोल - लोचन! कह रहे- "हम तपस्वी हैं, सभी दुख सह रहे। गिन रहे दिन ग्रीष्म - वर्षा - शीत के; काल -ताल- तरंग में हम बह रहे। मौन हैं, पर पतन में- उत्थान में , वेणु - वर - वादन -निरत - विभु गान में है छिपा जो मर्म उसका, समझते; किन्तु फिर भी हैं उसी के ध्यान में। आह! कितने विकल-जन-मन मिल चुके; हिल चुके, कितने हृदय हैं खिल चुके। तप चुके वे प्रिय - व्यथा की आंच में; दुःख उन अनुरागियों के झिल चुके। क्यों हमारे ही लिये वे मौन हैं? पथिक, वे कोमल कुसुम हैं-कौन हैं?"

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