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पूज्य पिता के सहज सत्य पर, वार सुधाम, धरा, धन को, चले राम, सीता भी उनके, पीछे चलीं गहन वन को। उनके पीछे भी लक्ष्मण थे, कहा राम ने कि "तुम कहाँ?" विनत वदन से उत्तर पाया—"तुम मेरे सर्वस्व जहाँ॥"...

निर्बल का बल राम है। हृदय ! भय का क्या काम है।। राम वही कि पतित-पावन जो परम दया का धाम है,...

पर मैं ही यदि परनारी से, पहले संभाषण करता, तो छिन जाती आज कदाचित् पुरुषों की सुधर्मपरता। जो हो, पर मेरे बारे में, बात तुम्हारी सच्ची है, चण्डि, क्या कहूँ, तुमसे, मेरी, ममता कितनी कच्ची है॥...

सखे, मेरे बन्धन मत खोल, आप बँधा हूँ आप खुलूँ मैं, तू न बीच में बोल। जूझूँगा, जीवन अनन्त है,...

भजो भारत को तन-मन से। बनो जड़ हाय! न चेतन से॥ करते हो किस इष्ट देव का आँख मूँद का ध्यान? तीस कोटि लोगों में देखो तीस कोटि भगवान।...

मस्तक ऊँचा हुआ मही का, धन्य हिमालय का उत्कर्ष। हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥ हरा-भरा यह देश बना कर विधि ने रवि का मुकुट दिया, पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया।...

जीव, हुई है तुझको भ्रान्ति; शान्ति नहीं, यह तो है श्रान्ति ! अरे, किवाड़ खोल, उठ, कब से मैं हूँ तेरे लिए खड़ा,...

वह बाल बोध था मेरा निराकार निर्लेप भाव में भान हुआ जब तेरा। तेरी मधुर मूर्ति, मृदु ममता,...

रमा है सबमें राम, वही सलोना श्याम। जितने अधिक रहें अच्छा है अपने छोटे छन्द, ...

जय भारत-भूमि-भवानी! अमरों ने भी तेरी महिमा बारंबार बखानी। तेरा चन्द्र-वदन वर विकसित शान्ति-सुधा बरसाता है; मलयानिल-निश्वास निराला नवजीवन सरसाता है।...

उठो, हे भारत, हुआ प्रभात। तजो यह तन्द्रा; जागो तात! मिटी है कालनिशा इस वार, हुआ है नवयुग का संचार।...

अरे भारत! उठ, आँखें खोल, उड़कर यंत्रों से, खगोल में घूम रहा भूगोल! अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है।...

हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ...

हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां...

नहीं, मुझे सन्तोष नहीं। मिथ्या मेरा घोष नहीं। वह देता जाता है ज्यों ज्यों, लोभ वृद्धि पाता है त्यों त्यों,...

इस शरीर की सकल शिराएँ हों तेरी तन्त्री के तार, आघातों की क्या चिन्ता है, उठने दे ऊँची झंकार।...

जो कुछ होनी थी, सब होली! धूल उड़ी या रंग उड़ा है, हाथ रही अब कोरी झोली। आँखों में सरसों फूली है,...

कुछ न पूछ, मैंने क्या गाया बतला कि क्या गवाया ? जो तेरा अनुशासन पाया मैंने शीश नवाया।...

हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां...

किसी जन ने किसी से क्लेश पाया नबी के पास वह अभियोग लाया। मुझे आज्ञा मिले प्रतिशोध लूँ मैं। नही निःशक्त वा निर्बोध हूँ मैं।...

उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा । मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ?...

हाँ, निशान्त आया, तूने जब टेर प्रिये, कान्त, कान्त, उठो, गाया--- चौँक शकुन-कुम्भ लिये हाँ, निशान्त गाया । आहा! यह अभिव्यक्ति,...

नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है। सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥ नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं। बंदीजन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है॥...

भारत माता का मंदिर यह समता का संवाद जहाँ, सबका शिव कल्याण यहाँ है पावें सभी प्रसाद यहाँ ।...

निरख सखी ये खंजन आए फेरे उन मेरे रंजन ने नयन इधर मन भाए फैला उनके तन का आतप मन से सर सरसाए घूमे वे इस ओर वहाँ ये हंस यहाँ उड़ छाए...

एक सफेद बड़ा-सा ओला, था मानो हीरे का गोला! हरी घास पर पड़ा हुआ था, वहीं पास मैं खड़ा हुआ था!...

"माँ कह एक कहानी।" बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?" "कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?...

तेरे घर के द्वार बहुत हैं, किसमें हो कर आऊं मैं? सब द्वारों पर भीड़ मची है, कैसे भीतर जाऊं मैं?...

होकर कौतूहल के बस में, गया एक दिन मैं सरकस में। भय-विस्मय के खेल अनोखे, देखे बहु व्यायाम अनोखे।...

आओ हो वनवासी! अब गृह भार नहीं सह सकती देव तुम्हारी दासी!! राहुल पल कर जैसे तैसे, ...

मत्त-सा नहुष चला बैठ ऋषियान में व्याकुल से देव चले साथ में, विमान में पिछड़े तो वाहक विशेषता से भार की अरोही अधीर हुआ प्रेरणा से मार की...

दोनों ओर प्रेम पलता है। सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है! सीस हिलाकर दीपक कहता-- ’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’...

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी। हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे¸ वृथा जिये¸ नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए।...

चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में। पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से, मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥...

सखि, वे मुझसे कहकर जाते, कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते? मुझको बहुत उन्होंने माना फिर भी क्या पूरा पहचाना?...

मुझे फूल मत मारो, मैं अबला बाला वियोगिनी, कुछ तो दया विचारो। होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु गरल न गारो, मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो।...

नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो...

हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ...

शिशिर न फिर गिरि वन में जितना माँगे पतझड़ दूँगी मैं इस निज नंदन में कितना कंपन तुझे चाहिए ले मेरे इस तन में सखी कह रही पांडुरता का क्या अभाव आनन में...

मृषा मृत्यु का भय है जीवन की ही जय है । जीव की जड़ जमा रहा है नित नव वैभव कमा रहा है...