जगौनी
उठो, हे भारत, हुआ प्रभात। तजो यह तन्द्रा; जागो तात! मिटी है कालनिशा इस वार, हुआ है नवयुग का संचार। उठो; खोलो अब अपना द्वार, प्रतीक्षा करता है संसार। हदय में कुछ तो करो विचार, पड़े हो कब से पैर पसार! करो अब और न अपना घात। उठो, हे भारत, हुआ प्रभात॥ जगत को देकर शिक्षा-दान, बने हो आप स्वयं अज्ञान! सुनाकर मधुर मुक्ति का गान, हुए हो सहसा मूक-समान। संभालो अब भी अपना मान, सहारा देंगे श्री भगवान। बनेगी फिर भी बिगड़ी बात। उठो, हे भारत, हुआ प्रभात॥

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