भजो भारत को तन-मन से
भजो भारत को तन-मन से। बनो जड़ हाय! न चेतन से॥ करते हो किस इष्ट देव का आँख मूँद का ध्यान? तीस कोटि लोगों में देखो तीस कोटि भगवान। मुक्ति होगी इस साधन से। भजो भारत को तन-मन से॥ जिसके लिए सदैव ईश ने लिये आप अवतार, ईश-भक्त क्या हो यदि उसका करो न तुम उपकार। पूछ लो किसी सुधी जन से। भजो भारत को तन-मन से॥ पद पद पर जो तीर्थ भूमि है, देती है जो अन्न, जिसमें तुम उत्पन्न हुए हो करो उसे सम्पन्न। नहीं तो क्या होगा धन से? भजो भारत को तन-मन से॥ हो जावे अज्ञान-तिमिर का एक बार ही नाश, और यहाँ घर घर में फिर से फैले वही प्रकाश। जियें सब नूतन जीवन से। भजो भारत को तन-मन से॥

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