अर्थ
कुछ न पूछ, मैंने क्या गाया बतला कि क्या गवाया ? जो तेरा अनुशासन पाया मैंने शीश नवाया। क्या क्या कहा, स्वयं भी उसका आशय समझ न पाया, मैं इतना ही कह सकता हूँ— जो कुछ जी में आया। जैसा वायु बहा वैसा ही वेणु – रन्ध्र – रव छाया; जैसा धक्का लगा, लहर ने वैसा ही बल खाया। जब तक रही अर्थ की मन में मोहकारिणी माया, तब तक कोई भाव भुवन का भूल न मुझको भाया। नाचीं कितने नाच न जानें कुठपुतली - सी काया, मिटी न तृष्णा, मिला न जीवन, बहुतेरे मुँह बाया। अर्थ भूल कर इसीलिए अब, ध्वनि के पीछे धाया, दूर किये सब बाजे गाजे, ढूह ढोंग का ढाया। हृत्तन्त्री का तार मिले तो स्वर हो सरस सवाया, और समझ जाऊँ फिर मैं भी— यह मैंने है गाया॥

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