बन्धन
सखे, मेरे बन्धन मत खोल, आप बँधा हूँ आप खुलूँ मैं, तू न बीच में बोल। जूझूँगा, जीवन अनन्त है, साक्षी बन कर देख, और खींचता जा तू मेरे जन्म-कर्म की रेख। सिद्धि का है साधन ही मोल, सखे, मेरे बन्धन मत खोल। खोले-मूँदे प्रकृति पलक निज, फिर एक दिन फिर रात, परमपुरुष, तू परख हमारे घात और प्रतिघात। उन्हें निज दृष्टि-तुला पर तोल, सखे, मेरे बन्धन मत खोल। कोटि कोटि तर्कों के भीतर पैठी तैरी युक्ति, कोटि-कोटि बन्धन-परिवेष्टित बैठी मेरी मुक्ति, भुक्ति से भिन्न, अकम्प, अडोल, सखे, मेरे बन्धन मत खोल। खींचे भुक्ति पटान्त पकड़ कर मुक्ति करे संकेत, इधर उधर आऊँ जाऊँ मैं पर हूँ सजग सचेत। हृदय है क्या अच्छा हिण्डोल, सखे, मेरे बन्धन मत खोल। तेरी पृथ्वी की प्रदक्षिणा देख रहे रवि सोम, वह अचला है करे भले ही गर्जन तर्जन व्योम। न भय से, लीला से हूँ लोल, सखे, मेरे बन्धन मत खोल। ऊबेगा जब तक तरा जा देख देख यह खेल, हो जावेगा तब तक मेरी भुक्ति-मुक्ति का मेल। मिलेंगे हाँ, भूगोल-खगोल, सखे, मेरे बन्धन मत खोल।

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