मातृ-मूर्ति
जय भारत-भूमि-भवानी! अमरों ने भी तेरी महिमा बारंबार बखानी। तेरा चन्द्र-वदन वर विकसित शान्ति-सुधा बरसाता है; मलयानिल-निश्वास निराला नवजीवन सरसाता है। हदय हरा कर देता है यह अंचल तेरा धानी; जय जय भारत-भूमि-भवानी! उच्च हदय-हिमगिरि से तेरी गौरव-गंगा बहती है; और करुण-कालिन्दी हमको प्लावित करती रहती है। मौन मग्न हो रही देखकर सरस्वती-विधि वाणी; जय जय भारत-भूमि-भवानी! तेरे चित्र विचित्र विभूषण हैं शूलों के हारों के; उन्नत-अम्बर-आतपत्र में रत्न जड़े हैं तारों के। केशों से मोती झरते है या मेघों से पानी ? जय जय भारत-भूमि-भवानी! वरद-हस्त हरता है तेरे शक्ति-शूल की सब शंका; रत्नाकर-रसने, चरणों में अब भी पड़ी कनक लंका। सत्य-सिंह-वाहिनी बनी तू विश्व-पालिनी रानी; जय जय भारत-भूमि-भवानी! करके माँ, दिग्विजय जिन्होंने विदित विश्वजित याग किया, फिर तेरा मृत्पात्र मात्र रख सारे धन का त्याग किया। तेरे तनय हुए हैं ऐसे मानी, दानी, ज्ञानी-- जय जय भारत-भूमि-भवानी! तेरा अतुल अतीत काल है आराधन के योग्य समर्थ; वर्तमान साधन के हित है और भविष्य सिद्धि के अर्थ। भुक्ति मुक्ति की युक्ति, हमें तू रख अपना अभिमानी; जय जय भारत-भूमि-भवानी!

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