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मैंने देखा : यह बरखा का दिन! मायावी मेघों ने सिर का सूरज काट लिया; गजयूथों ने आसमान का आँगन पाट दिया;...
चम्मचों से नहीं आकंठ डूब कर पिया जाता है दुख को दुख की नदी में और तब जिया जाता है...
मैंने देखा : यह बरखा का दिन! मायावी मेघों ने सिर का सूरज काट लिया; गजयूथों ने आसमान का आँगन पाट दिया;...
चम्मचों से नहीं आकंठ डूब कर पिया जाता है दुख को दुख की नदी में और तब जिया जाता है...