सभी तो जीते हैं
सभी तो जीते हैं जमीन जहान मकान दुकान और संविधान की जिन्दगी, अपने लिए- साम्पत्तिक सम्बंधों के लिए- राजनीतिक दाँवपेंच की धोखाधड़ी में। सभी तो हो गए हैं शतरंज की बिछी बिसात में खड़े कर दिए गए मोहरे, जो, खुद तो नहीं- खेलाड़ियों के चलाए चलते हैं हार-जीत के लिए। मोहरे पीटते हैं मोहरों को; खेलाड़ी नहीं पीटते खेलाड़ियों को। मोहरे पिटते हैं मोहरों से; खेलाड़ी नहीं पिटते खेलाड़ियों से। खेलते-खेलते खेल लोग जिंदगी जीते हैं- मात देते- मात खाते; कभी मीठे- कभी कड़ुवे घूँट पीते।

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