खड़ा है
खड़ा है बुजुर्गवार इमली का पेड़ निर्वाक- पुरनिया- उद्भिज अस्तित्व की प्रलम्ब उँचाई अपनाए, कलाकार की तरह कलाकृतियों की जड़ें, भूगर्भ में गड़ाए; जटाजाल का सिर-छत्र आकाश में फैलाए। वनस्पतीय बोध का सम्राट- विराट की कनिष्ठिका के समान- त्रिकाल-भोगी- ध्यानस्थ योगी हुआ।

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