जीवन से
ऐसे आओ जैसे गिरि के श्रृंग शीश पर रंग रूप का क्रीट लगाये बादल आये, हंस माल माला लहराये और शिला तन- कांति-निकेतन तन बन जाये। तब मेरा मन तुम्हें प्राप्त कर स्वयं तुम्हारी आकांक्षा का बन जायेगा छवि सागर, जिसके तट पर, शंख-सीप-लहरों के मणिधर आयेंगे खेलेंगे मनहर, और हँसेगा दिव्य दिवाकर।

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