बरखा का दिन
मैंने देखा : यह बरखा का दिन! मायावी मेघों ने सिर का सूरज काट लिया; गजयूथों ने आसमान का आँगन पाट दिया; फिर से असगुन भाख रही रजकिन। मैंने देखा : यह बरखा का दिन! दूध-दही की गोरी ग्वालिन डरकर भाग गई; रूप-रूपहली धूप धरा को तत्क्षण त्याग गई; हुड़क रही अब बगुला को बगुलिन! मैंने देखा : यह बरखा का दिन! बड़े-बड़े बादल के योद्धा बरछी मार रहे; पानी-पवन-प्रलय के रण का दृश्य उभार रहे; तड़प रही अब मुँह बाए बाघिन।

Read Next