जाता हूँ
जाता हूँ उत्तर से दक्षिण दो बरसों के बाद; मुझे बुलाता है ‘मदरास’, बेटे और बहू-पोतों के पास। जब पहुँचूँगा तब टूटेगा यह मेरा सन्यास- प्यार-प्यार के इस भूखे का यह उपवास।

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