Mirza Asadullah Baig Khan
Mirza Ghalib
( 1797 - 1869 )

Ghalib (Hindi: ग़ालिब) born Mirza Asadullah Beg Khan (Hindi: मिर्ज़ा असदुल्लाह् बेग़ ख़ान), was the preeminent Urdu and Persian-language poet during the last years of the Mughal Empire. More

आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या...

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई...

ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स बर्क़ से करते हैं रौशन शम्-ए-मातम-ख़ाना हम महफ़िलें बरहम करे है गंजिंफ़ा-बाज़-ए-ख़याल हैं वरक़-गर्दानी-ए-नैरंग-ए-यक-बुत-ख़ाना हम...

ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना क्या क़सम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूँ...

शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था शोला-ए-जव्वाला हर यक हल्क़ा-ए-गिर्दाब था वाँ करम को उज़्र-ए-बारिश था इनाँ-गीर-ए-ख़िराम गिर्ये से याँ पुम्बा-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था...

वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ हम को हरीस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार देख कर...

हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता...

क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ ख़त्त-ए-जाम-ए-मै सरासर रिश्ता-ए-गौहर हुआ ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना ग़ैर ने की आह लेकिन वो ख़फ़ा मुझ पर हुआ...

ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे...

उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है 'ग़ालिब' हम भी गए वाँ और तिरी तक़दीर को रो आए...