Ameer Minai or Amir Meenai (Hindi: अमीर मीनाई) was a 19th-century Indian poet. He was respected by several contemporary poets including Ghalib and Daagh Dehalvi and by Muhammad Iqbal. He wrote in Urdu, Persian and Arabic.More
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
डाल के ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी कि छुपा भी न सकूँ...
है ख़मोशी ज़ुल्म-ए-चर्ख़-ए-देव-पैकर का जवाब
आदमी होता तो हम देते बराबर का जवाब
जो बगूला दश्त-ए-ग़ुर्बत में उठा समझा ये मैं
करती है तामीर दीवानी मिरे घर का जवाब...
हम-सर-ए-ज़ुल्फ़ क़द-ए-हूर-ए-शिमाइल ठहरा
लाम का ख़ूब अलिफ़ मद्द-ए-मुक़ाबिल ठहरा
दीदा-ए-तर से जो दामन में गिरा दिल ठहरा
बहते बहते ये सफ़ीना लब-ए-साहिल ठहरा...
हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़
न इधर के हैं इलाही न उधर के आशिक़
है वही आँख जो मुश्ताक़ तिरे दीद की हो
कान वो हैं जो रहें तेरी ख़बर के आशिक़...
गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं
सहर हुई तो वो आँखें न वो निगाहें थीं
निकल के चेहरे पे मैदान साफ़ ख़त ने किया
कभी ये शहर था ऐसा कि बंद राहें थीं...
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
कभी तकिया इधर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा
शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा
लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा...