चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़
चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़ मग़्ज़ रिंदों का खा गया वाइज़ तेरे कहने से रिंद जाएँगे ये तो है ख़ाना-ए-ख़ुदा वाइज़ अल्लाह अल्लाह ये किब्र और ये ग़ुरूर क्या ख़ुदा का है दूसरा वाइज़ बे-ख़ता मय-कशों पे चश्म-ए-ग़ज़ब हश्र होने दे देखना वाइज़ हम हैं क़हत-ए-शराब से बीमार किस मरज़ की है तू दवा वाइज़ रह चुका मय-कदे में सारी उम्र कभी मय-ख़ाने में भी आ वाइज़ हज्व-ए-मय कर रहा था मिम्बर पर हम जो पहुँचे तो पी गया वाइज़ दुख़्त-ए-रज़ को बुरा मिरे आगे फिर न कहना कभी सुना वाइज़ आज करता हूँ वस्फ़-ए-मय मैं 'अमीर' देखूँ कहता है इस में क्या वाइज़

Read Next