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निकल आया है मेरी ख़ामोश निगाहों से बचपन की हँसी का फौवारा तुम्हारे जन्म-दिन पर...

रची उषा ने ऋचा दिवा की निशा सिरानी; सुख के आमुख खिले कमल-मुख, पुलके प्रानी;...

भरते-भरते जितना-जितना भरता जाता उतना-उतना मन गहरे से...

चिलम पी रहा है बूढ़ा हो गया कुँआ नई आई धूप हो गई है धुँआ।...

है क्या नहीं है समय की चाल में अब जो अतीत में चल रहे हैं सब...

राख की मुर्दा तहों के बहुत नीचे, नींद की काली गुफाओं के अँधेरे में तिरोहित, मृत्यु के भुज-बंधनों में चेतनाहत जो अँगारे खो गए थे,...

ख़बर है कि वह नहीं है उसकी बुझी लालटेन दर्द के हरे पेड़ पर टंगी है...

जो न होना था, हुआ; हुआ जो यह हुआ- अनजाना हुआ। अब जो आए,...

बड़ा दूध का धोया है वह कि उसे गालियाँ देती है दीवाल सड़क के किनारे खड़ी...

विकट है यह सघन अंधकार का झुरमुट कि मैं चला आऊंगा फिर भी तुम्हारी पुकार के बने पथ से तुमसे मिलने...

धवल, यशस्वी, कांतिकाय तुम, शरद-पूर्णिमा के आत्मज से,...

चली गई है कोई श्यामा, आँख बचा कर, नदी नहा कर काँप रहा है अब तक व्याकुल विकल नील जल।...

आज मरा फिर एक आदमी! राम राज का एक आदमी!! बिना नाम का बिना धाम का...

वही-वही पीर और पानी की, प्राकृत कुरबानी की- नेह और नाते की नदिया,...

न आया वह जिसे आना था मेरे पास फूल का गुलदस्ता भेंट के लिए खोल दिया था जिसके अस्तित्व के लिए...

देश में लगी आग को लफ्फाजी नेता शब्दों से बुझाते हैं; वाग्धारा से...

सुबह से शाम तक पानी की प्रलम्ब प्रवाहित देह प्रकाश-ही-प्रकाश पीती है...

कविता जो न सार्थक हो- न सटीक हो- न बोधक हो-...

प्रलम्बित खड़े हैं बियाबान मौन के पहरुये दिगम्बरी रहस्य की चांदनी ओढे पेड़...

पछाड़ते-पछाड़ते सफेद हो गई जिंदगी जैसे कफन। मौत का मसान...

आज ही तो हुआ था मेरा जन्म अरसठ वर्ष पूर्व। तब से आज तक...

जी आया अपने जीवन के अस्सी साल अब...

नंगा न हुआ आदमी बुरा हुआ आदमी को खा गया आदमी का लिबास...

काल बंधा है दिव-देवालय के पाषाणी वृषभ कण्ठ से;...

मरना होगा इस होने को तो होना है लेकिन तब तक...

सत्य कहीं है-- कहीं नहीं है असत्य सब कहीं है-- घर हो-- या बाहर...

मैंने कुछ पा लिया है तुमसे जो मान और गौरव से बड़ा है।...

पानी पड़ा भँवर में नाचे; नाव किनारे थर-थर काँपे; चिड़िया पार गई;...

धूप पिए पानी लेटा है सीना खोले नौजवान बेटा है युग के श्रमजीवी का।...

जिसने सोने को खोदा, लोहा मोड़ा है जो रवि के रथ का घोड़ा है...

देश की छाती दरकते देखता हूँ! थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को, पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ! सत्य के जारज सुतों को,...

वह जाकर चली आती है रूपए लेकर...

आज सामंती पुरानी हो गई मौत के मुँह की कहानी हो गई जो भलाई थी बुराई हो गई जो कमाई थी चुराई हो गई...

न जवान- न बूढ़ा- न जीवित- न मरा-...

डूबती आँखों से बह रहा है पानी-- निराधार पानी कोई देवता है विकल जो भीतर रो रहा है...

‘मैं’ सिर्फ ‘मैं’ नहीं है इस ‘मैं’ में; तमाम-तमाम लोग हैं दुनिया भरके इस ‘मैं’ में।...

उड़कर आए नीलकंठ जी मेरे घर में दर्शन देकर मुझे रिझाने मेरे दुख-संताप मिटाने।...

लाल हो गया है, और भी अधिक लाल षोडशी के सल्लज स्वभाव से खुलते देख कर खिलते अंगों का दुराव !...

जो खुल ग्या है बिना खुले उस देह का विदेह मैंने देखा।...

न आदमी है-- न आदमी की छाया उसको मैंने आदमियों के विरोध में खड़ा पाया न वह पुलिस की पकड़ में आया...