राख की मुर्दा तहों के बहुत नीचे, नींद की काली गुफाओं के अँधेरे में तिरोहित, मृत्यु के भुज-बंधनों में चेतनाहत जो अँगारे खो गए थे,...
विकट है यह सघन अंधकार का झुरमुट कि मैं चला आऊंगा फिर भी तुम्हारी पुकार के बने पथ से तुमसे मिलने...
चली गई है कोई श्यामा, आँख बचा कर, नदी नहा कर काँप रहा है अब तक व्याकुल विकल नील जल।...
न आया वह जिसे आना था मेरे पास फूल का गुलदस्ता भेंट के लिए खोल दिया था जिसके अस्तित्व के लिए...
देश की छाती दरकते देखता हूँ! थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को, पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ! सत्य के जारज सुतों को,...
आज सामंती पुरानी हो गई मौत के मुँह की कहानी हो गई जो भलाई थी बुराई हो गई जो कमाई थी चुराई हो गई...
डूबती आँखों से बह रहा है पानी-- निराधार पानी कोई देवता है विकल जो भीतर रो रहा है...
‘मैं’ सिर्फ ‘मैं’ नहीं है इस ‘मैं’ में; तमाम-तमाम लोग हैं दुनिया भरके इस ‘मैं’ में।...
लाल हो गया है, और भी अधिक लाल षोडशी के सल्लज स्वभाव से खुलते देख कर खिलते अंगों का दुराव !...
न आदमी है-- न आदमी की छाया उसको मैंने आदमियों के विरोध में खड़ा पाया न वह पुलिस की पकड़ में आया...