पछाड़ते-पछाड़ते
पछाड़ते-पछाड़ते सफेद हो गई जिंदगी जैसे कफन। मौत का मसान अब मुझे बुलाता है नदी किनारे। फूला खड़ा है इस उम्र में, अब भी, राह रोके प्यार का पुष्पित पौधा। न जाऊँगा अब मसान जगाने, जिऊँगा जिंदगी अभी और अभी और जानदार पौधे के तले रंग-रूप को लगाए गले।

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