‘मैं’ सिर्फ ‘मैं’ नहीं
‘मैं’ सिर्फ ‘मैं’ नहीं है इस ‘मैं’ में; तमाम-तमाम लोग हैं दुनिया भरके इस ‘मैं’ में। यही है मेरा ‘मैं’- प्राण से प्यारा ‘मैं’; यही जीता है मुझे; इसी को जीता हूँ मैं; यही जीता है दुनिया को,- दुनिया के तमाम-तमाम लोगों को; इसी को जीती है दुनिया; इसी को जीते हैं दुनिया के तमाम-तमाम लोग। यही है मेरा ‘मैं’- प्राण से प्यारा ‘मैं’।

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