काल बंधा है
काल बंधा है दिव-देवालय के पाषाणी वृषभ कण्ठ से; बधिर, अचंचल, घंटे जैसा मौन टंगा है आसमान से भू तक लटका; मैं अनबजा वही घंटा हूँ।

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