भरते-भरते
भरते-भरते जितना-जितना भरता जाता उतना-उतना मन गहरे से ज्यादा गहरा होता जाता मानव का मन पूरा-पूरा कभी न भरता कुछ-कुछ खाली-खाली दिखता चाहे इसमें सिंधु समायें चाहे, शोभा सुषमा सारी संस्कृतियाँ इसकी हो जाएँ, ललित लोक पर लोक बसाएँ- इसके भीतर अपनी दुनिया। मानव का मन हरदम हरदम भरा-भरा भी भरा न लगता मथा-मथा भी मथा न लगता, शंख सरीखा बजने लगता; नादनिनादित शब्द निकलते कविताओं के साथ थिरकते। मानव का मन प्रगतिशील है गत से आगत आगत से आगम को जाता आगम को भी गत-आगत कर- आगे का आगम हो जाता, कभी न पिछड़ा- कभी न छिछला होता व्यापक से व्यापक हो जाता।

Read Next