जन-क्रांति
राख की मुर्दा तहों के बहुत नीचे, नींद की काली गुफाओं के अँधेरे में तिरोहित, मृत्यु के भुज-बंधनों में चेतनाहत जो अँगारे खो गए थे, पूर्वी जन-क्रांति के भूकम्प ने उनको उभारा; जिंदगी की लाल लपटों ने उन्हें चूमा-सँवारा, और वह दहके सबल शस्त्रास्त्र लेकर, रक्त के शोषण विदेशी शासकों पर, और देशी भेड़ियों पर!

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