सुबह से शाम तक
सुबह से शाम तक पानी की प्रलम्ब प्रवाहित देह प्रकाश-ही-प्रकाश पीती है न रात में सोती- न रोती है, उच्छल तरंगित होती है; न सूखी, न रीती, जीवंत जीती है। केन है केन! प्रवाहित प्यार की- मेरी नदी केन, मेरे आत्म-प्रसार की मेरी नदी केन!

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