अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता, सुनना चाहता हूँ एक समर्थ सच्ची आवाज़ यदि कहीं हो। ...
सूँड उठाकर हाथी बैठा पक्का गाना गाने, मच्छर एक घुस गया कान में, लगा कान खुजलाने।...
मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के । आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के ।...
किताबों मे बिल्ली ने बच्चे दिए हैं, ये बच्चे बड़े हो के अफ़सर बनेंगे । दरोगा बनेंगे किसी गाँव के ये, किसी शहर के ये कलक्टर बनेंगे ।...
दूर-दूर तक सोई पडी थीं पहाड़ियाँ अचानक टीले करवट बदलने लगे जैसे नींद में उठ चलने लगे ।...
यह सिमटती साँझ, यह वीरान जंगल का सिरा, यह बिखरती रात, यह चारों तरफ सहमी धरा; उस पहाड़ी पर पहुँचकर रोशनी पथरा गयी,...
काँच की बन्द खिड़कियों के पीछे तुम बैठी हो घुटनों में मुँह छिपाए। क्या हुआ यदि हमारे-तुम्हारे बीच एक भी शब्द नहीं।...
एक-दूसरे को बिना जाने पास-पास होना और उस संगीत को सुनना जो धमनियों में बजता है,...
चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन के प्रति स्नेह और श्रद्धा के साथ फैले हरे पर क्यों सिमटी पीली रेखा - मैंने ख़ुद को...
कितना चौड़ा पाट नदी का कितनी भारी शाम कितने खोये खोये से हम कितना तट निष्काम ...
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया ताते जल नहा पहन श्वेत वसन आयी खुले लान बैठ गयी दमकती लुनायी सूरज खरगोश धवल गोद उछल आया।...
चिडि़या को लाख समझाओ कि पिंजड़े के बाहर धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है, वहाँ हवा में उन्हेंर...
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई, नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है ...
नए साल की शुभकामनाएँ! खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को नए साल की शुभकामनाएं! ...
पाठशाला खुला दो महाराज मोर जिया पढ़ने को चाहे! आम का पेड़ ये ठूंठे का ठूंठा...
चूहा एक ऊँट पर चढ़, झटपट चला बहादुरगढ़। राह में गहरा ताल पड़ा, चूहे का ननिहाल पड़ा।...
चींटियाँ अंडे उठाकर जा रही हैं, और चिड़ियाँ नीड़ को चारा दबाए, धान पर बछड़ा रंभाने लग गया है, टकटकी सूने विजन पथ पर लगाए,...
मेरी साँसों पर मेघ उतरने लगे हैं, आकाश पलकों पर झुक आया है, क्षितिज मेरी भुजाओं में टकराता है, आज रात वर्षा होगी।...
जारी है-जारी है अभी लड़ाई जारी है। यह जो छापा तिलक लगाए और जनेऊंधारी है यह जो जात पांत पूजक है यह जो भ्रष्टाचारी है...
तुमसे अलग होकर लगता है अचानक मेरे पंख छोटे हो गए हैं, और मैं नीचे एक सीमाहीन सागर में गिरता जा रहा हूँ।...
अक्सर एक गन्ध मेरे पास से गुज़र जाती है, अक्सर एक नदी मेरे सामने भर जाती है,...
सब कुछ कह लेने के बाद कुछ ऐसा है जो रह जाता है, तुम उसको मत वाणी देना। वह छाया है मेरे पावन विश्वासों की,...
अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा। देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिये हैं मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर ...