तुम्हारे लिए
काँच की बन्द खिड़कियों के पीछे तुम बैठी हो घुटनों में मुँह छिपाए। क्या हुआ यदि हमारे-तुम्हारे बीच एक भी शब्द नहीं। मुझे जो कहना है कह जाऊँगा यहाँ इसी तरह अदेखा खड़ा हुआ, मेरा होना मात्र एक गन्ध की तरह तुम्हारे भीतर-बाहर भर जाएगा। क्योंकि तुम जब घुटनों से सिर उठाओगी तब बाहर मेरी आकृति नहीं यह धुंधलाती शाम और आँच पर जगी एक हल्की-सी भाप देख सकोगी जिसे इस अंधेरे में तुम्हारे लिए पिघलकर मैं छोड़ गया होऊँगा।

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