अजनबी देश है यह
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई, नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं, फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में रास्ता है कि कहीं और चला जाता है दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की आप ही रोता है औ आप ही समझाता है।

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