Sarveshwar Dayal Saxena
( 1927 - 1983 )

Sarveshwar Dayal Saxena (Hindi: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना) was a noted Hindi writer, poet, columnist and playwright. He was one of the seven poets who first published in one of the "Tar Saptaks", which ushered in the ‘Prayogvaad’ (Experimentalism) era, which in time evolved to become the "Nayi Kavita" (New Poetry) movement. More

बहुत बडी जेबों वाला कोट पहने ईश्वर मेरे पास आया था, मेरी मां, मेरे पिता, मेरे बच्चे और मेरी पत्नी को...

सूरज के साथ-साथ सन्ध्या के मंत्र डूब जाते थे, घंटी बजती थी अनाथ आश्रम में भूखे भटकते बच्चों के लौट आने की,...

खूँटी पर कोट की तरह एक अरसे से मैं टँगा हूँ कहाँ चला गया मुझे पहन कर सार्थक करने वाला?...

अगर कहीं मैं घोड़ा होता, वह भी लंबा-चौड़ा होता। तुम्हें पीठ पर बैठा करके, बहुत तेज मैं दोड़ा होता॥ पलक झपकते ही ले जाता, दूर पहाड़ों की वादी में। बातें करता हुआ हवा से, बियाबान में, आबादी में॥...

कुछ धुआँ कुछ लपटें कुछ कोयले कुछ राख छोड़ता...

जब भी भूख से लड़ने कोई खड़ा हो जाता है सुन्दर दीखने लगता है।...

मेरे पिता ने मुझे एक नोटबुक दी जिसके पचास पेज मैं भर चुका हूँ।...

तुमने जो स्वेटर मुझे बुनकर दिया है उसमें कितने घर हैं यह मैं नहीं जानता,...

क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है। बिन अदालत औ मुवक्किल के मुकदमा पेश है। आँख में दरिया है सबके दिल में है सबके पहाड़...

भेड़िए की आंखें सुर्ख हैं। उसे तबतक घूरो जब तक तुम्हारी आंखें सुर्ख न हो जाएं।...