माँ की याद
चींटियाँ अंडे उठाकर जा रही हैं, और चिड़ियाँ नीड़ को चारा दबाए, धान पर बछड़ा रंभाने लग गया है, टकटकी सूने विजन पथ पर लगाए, थाम आँचल,थका बालक रो उठा है, है खड़ी माँ शीश का गट्ठर गिराए, बाँह दो चमकारती–सी बढ़ रही है, साँझ से कह दो बुझे दीपक जलाये। शोर डैनों में छिपाने के लिए अब, शोर माँ की गोद जाने के लिए अब, शोर घर-घर नींद रानी के लिए अब, शोर परियों की कहानी के लिए अब, एक मैं ही हूँ कि मेरी सांझ चुप है, एक मेरे दीप में ही बल नहीं है, एक मेरी खाट का विस्तार नभ सा, क्योंकि मेरे शीश पर आँचल नहीं है।

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