जाड़े की धूप
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया ताते जल नहा पहन श्वेत वसन आयी खुले लान बैठ गयी दमकती लुनायी सूरज खरगोश धवल गोद उछल आया। बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया। नभ के उद्यान-छत्र तले मेजः टीला, पड़ा हरा फूल कढ़ा मेजपोश पीला, वृक्ष खुली पुस्तक हर पृष्ठ फड़फड़ाया। बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया। पैरों में मखमल की जूती-सी-क्यारी, मेघ ऊन का गोला बुनती सुकुमारी, डोलती सलाई हिलता जल लहराया। बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया। बोली कुछ नहीं, एक कुसीर् की खाली, हाथ बढ़ा छज्जे की साया सरकाली, बाँह छुड़ा भागा, गिर बर्फ हुई छाया। बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।

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