सूरज के साथ-साथ सन्ध्या के मंत्र डूब जाते थे, घंटी बजती थी अनाथ आश्रम में भूखे भटकते बच्चों के लौट आने की,...
खूँटी पर कोट की तरह एक अरसे से मैं टँगा हूँ कहाँ चला गया मुझे पहन कर सार्थक करने वाला?...
अगर कहीं मैं घोड़ा होता, वह भी लंबा-चौड़ा होता। तुम्हें पीठ पर बैठा करके, बहुत तेज मैं दोड़ा होता॥ पलक झपकते ही ले जाता, दूर पहाड़ों की वादी में। बातें करता हुआ हवा से, बियाबान में, आबादी में॥...
किताबों में बिल्ली ने बच्चे दिए हैं, ये बच्चे बड़े हो के अफसर बनेंगे! दरोगा बनेंगे किसी गाँव के ये, किसी शहर के ये कलेक्टर बनेंगे!...
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है। बिन अदालत औ मुवक्किल के मुकदमा पेश है। आँख में दरिया है सबके दिल में है सबके पहाड़...
भेड़िए की आंखें सुर्ख हैं। उसे तबतक घूरो जब तक तुम्हारी आंखें सुर्ख न हो जाएं।...
काम न मिलने पर अपने तीन भूखे बच्चों को लेकर कूद पड़ी हंजूरी कुएँ में कुएँ का पानी ठंडा था।...
हँसा ज़ोर से जब, तब दुनिया बोली इसका पेट भरा है और फूट कर रोया जब तब बोली नाटक है नखरा है...
खाली समय में, बैठ कर ब्लेड से नाखून काटें, बढी हुई दाढी में बालों के बीच की खाली जगह छांटे,...
मुझे तुम्हारी नानीजी ने, डब्बा-भर गुलकंद दिया। और तुम्हारे नानीजी ने कविता दी औ’ छंद दिया॥...
उम्र ज्यों - ज्यों बढ़ती है डगर उतरती नहीं पहाड़ी पर चढ़ती है। लड़ाई के नये - नये मोर्चे खुलते हैं...
तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएँ पास आ गयी हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है,...
नये साल की शुभकामनाएँ! खेतों की भेड़ों पर धूल-भरे पाँव को, कुहरे में लिपटे उस छोटे-से गाँव को, नए साल की शुभकामनाएँ!...
मैंने तुम्हारे दुख से अपने को जोड़ा और - और अकेला हो गया । मैंने तुम्हारे सुख से...
घन्त मन्त दुई कौड़ी पावा कौड़ी लै के दिल्ली आवा, दिल्ली हम का चाकर कीन्ह दिल दिमाग भूसा भर दीन्ह,...
बहुत बडी जेबों वाला कोट पहने ईश्वर मेरे पास आया था, मेरी मां, मेरे पिता, मेरे बच्चे और मेरी पत्नी को...
अक्की-बक्की करें तरक्की, गेहूँ छोड़ के बोएँ मक्की। मक्की लेकर भागें चक्की, देखे बुढ़िया हक्की-बक्की...
खुद कपड़े पहने दूसरे को कपड़े पहने देखना खुद कपड़े पहने दूसरे को कपड़े न पहने देखना...
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो?...
कुछ देर और बैठो – अभी तो रोशनी की सिलवटें हैं हमारे बीच। शब्दों के जलते कोयलों की आँच...
दूर दूर तक सोयी पड़ी थीं पहाड़ियाँ अचानक टीले करवट बदलने लगे जैसे नींद में उठ चलने लगे।...
काम न मिलने पर अपने तीन भूखे बच्चों को लेकर कूद पड़ी हंजूरी कुएँ में कुएँ का पानी ठंडा था।...
महँगू ने महँगाई में पैसे फूँके टाई में, फिर भी मिली न नौकरी औंधे पड़े चटाई में!...
लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं, हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।...
घास की एक पत्ती के सम्मुख मैं झुक गया और मैने पाया कि मैं आकाश छू रहा हूँ...
मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला चंवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत आए महंत वसंत...
आकाश का साफ़ा बाँधकर सूरज की चिलम खींचता बैठा है पहाड़, घुटनों पर पड़ी है नही चादर-सी,...