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तोड़ रहे हैं सुबह की ठंडी हवा को फूट रही सूरज की किरनें और ...

कठपुतली गुस्से से उबली बोली - ये धागे क्यों हैं मेरे पीछे आगे ?...

साल शुरू हो दूध दही से साल खत्म हो शक्कर घी से पिपरमैंट, बिस्कुट मिसरी से रहें लबालव दोनों खीसे...

मेरा लहरों पर डेरा तुमने तट से मुझे धरती पर क्यों टेरा दो मुझे अब मुझे...

अंदाज़ लग जाता है कि घिरने वाले हैं बादल फटने वाला है आसमान ख़त्म हो जाने वाला है...

हर बदल रहा आकार मेरी अंजुलि में आना चाहिए विराट हुआ करे कोई...

दूसरे सारे पंछी अपने सारे गीत गा चुके हैं रक्त और नील...

अमरूद से आम पर जा रही है गिलहरी आते-जाते...

बड़ी मुश्किल से उठ पाता है कोई मामूली-सा भी दर्द इसलिए...

नहीं रामचरण नहीं था न मदन था न रामस्वरूप कोई और था...

सूरज का गोला इसके पहले ही कि निकलता चुपके से बोला,हमसे - तुमसे इससे - उससे कितनी चीजों से...

एक तरैया देखी जब पांच ब्राहान न्योते तब अरसराम, परसराम तुलसी, गंगा, सालगराम!...

मैं जो हूँ मुझे वहीं रहना चाहिए। यानी वन का वृक्ष...

मैं तैयार नहीं था सफ़र के लिए याने सिर्फ चड्डी पहिने था और बनियान एकदम निकल पड़ना मुमकिन नहीं था और वह कोई ऐसा बमबारी...

अक्कड़-मक्कड़, धूल में धक्कड़, दोनों मूरख दोनों अक्खड़, हाट से लौटे, ठाट से लौटे, एक साथ एक बाट से लौटे।...

एक दिन होगी प्रलय भी; मिट (मत) रहेगी झोपड़ी, मिट जायेंगे नीलम-निलय भी। सात है सागर किसी दिन...

सतपुड़ा के घने जंगल। नींद मे डूबे हुए से ऊँघते अनमने जंगल। झाड ऊँचे और नीचे,...

एडिथ सिटवेल ने सूरज को धरती का पहला प्रेमी कहा है धरती को सूरज के बाद...

मैं उस दिन नदी के किनारे पर गया तो क्या जाने पानी को क्या सूझी...

कल हमारे चाँद सूरज और तारे बदल जायेंगे लगेंगे अमित प्यारे टूट जायेगा हमारा कड़ा घेरा और होगा मुक्त कल पहला सबेरा...

जैसे किसी ने मन के बखिए उघेड़ दिए सब खुल गया...

मछली उछली उजली चाँदनी ने उस पर हाथ फेरा...

उसे क्या नाम दूँ जिसे मैंने अपनी बुद्धि के अँधेरे में देखा नहीं छुआ जिसने मेरे छूने का जवाब ...

मैं जो हूँ मुझे वही रहना चाहिए यानी वन का वृक्ष...

नये अर्थ की प्यास में डूब गया शब्द मन का गोताख़ोर डूब गया उभरकर भँवर में अविश्वास के हुआ ही कुछ तो यह हुआ कि...

आता है सूरज तो जाती है रात किरणों ने झाँका है होगा प्रभात नये भाव पंछी चहकते है आज नए फूल मन मे महकते हैं आज...

तुम्हारी और से झिल्ली जो मढ़ी गई है मेरे ऊपर तन्तु जो तुम्हारा बाँधे है मुझे इच्छा जो अचल है ...

यह तो हो सकता है कि थक जाऊं मैं लिखने-पढ़ने से कवि की तरह दिखने से अच्छा मानता हूँ मैं किसी का भी...

शून्य होकर बैठ जाता है जैसे उदास बच्चा उस दिन उतना अकेला...

जीवन की ऊष्मा की याद भी बनी है जब तक तब तक मैं घुटने में सिर डालकर...

हवा का ज़ोर वर्षा की झड़ी, झाड़ों का गिर पड़ना कहीं गरजन का जाकर दूर सिर के पास फिर पड़ना उमड़ती नदी का खेती की छाती तक लहर उठना ध्‍वजा की तरह बिजली का दिशाओं में फहर उठना...

कठिन है अँधेरे को आत्मा से अलग करना...

मैं तुम्हें सूने में से चुन लाया क्या करते तुम अकेले झेलते झमेले हवा के थोड़ी देर...

तुम काग़ज़ पर लिखते हो वह सड़क झाड़ता है तुम व्यापारी वह धरती में बीज गाड़ता है ।...

एक क्षण के लिए जब अपने को आप जैसा पाया मैंने आसमान तब सिर पर उठाया मैंने ...

सुनाई पड़ते हैं सुनाई पड़ते हैं कभी कभी उनके स्वर जो नहीं रहे ...

नाक में बेसर सिर पर टोपी सारे मूंह पर केसर थोपी सरबेसर तब चले बज़ार लड़के पीछे लगे हज़ार।...

अपने ही सही होने का दावा दावानल है फल है चारों तरफ धू-धू चारों तरफ मैं-मैं...

मुझे पंछी बनाना अबके या मछली या कली और बनाना ही हो आदमी...

हवा तेज़ बह रही है और संग्रह जो मैं मुर्त्तिब करना चाह रहा हूँ उड़ा रही है उसके पन्ने...