तुम्हारी छाया में
जीवन की ऊष्मा की याद भी बनी है जब तक तब तक मैं घुटने में सिर डालकर नहीं बैठूँगा सिकुड़ा–सिकुड़ा भाई मरण तुम आ सकते हो चार चरण छलाँगें भरते मेरे कमरे में मैं ताकूँगा नहीं तुम्हारी तरफ़ डरते–डरते आँकूँगा जीवन की नयी कोई छाँव तुम्हारी छाया में!

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