भाई-चारा
अक्कड़-मक्कड़, धूल में धक्कड़, दोनों मूरख दोनों अक्खड़, हाट से लौटे, ठाट से लौटे, एक साथ एक बाट से लौटे। बात-बात में बात ठन गई, बाँह उठी और मूँछ तन गई, इसने उसकी गर्दन भींची, उसने इसकी दाढ़ी खींची। अब वह जीता, अब यह जीता, दोनों का बढ़ चला फज़ीता, लोग तमाशाई जो ठहरे- सबके खिले हुए थे चेहरे। मगर एक कोई था फक्कड़, मन का राजा कर्रा-कक्कड़, बढ़ा भीड़ को चीर-चारकर बोला ‘ठहरो’ गला फाड़कर। अक्कड़-मक्कड़ धूल में धक्कड़, दोनों मूरख दोनों अक्खड़, गर्जन गूँजी रुकना पड़ा, सही बात पर झुकना पड़ा। उसने कहा सही वाणी में, ‘डूबो चुल्लू-भर पानी में, ताकत लड़ने में मत खोओ, चलो भाई-चारे को बोओ। खाली सब मैदान पड़ा है, आफत का शैतान खड़ा है, ताकत ऐसे ही मत खोओ चलो भाई-चारे को बोओ।’ सुनी मूर्खों ने यह बानी, दोनों जैसे पानी-पानी लड़ना छोड़ा अलग हट गए, लोग शर्म से गले, छँट गए। सबको नाहक लड़ना अखरा, ताकत भूल गई सब नखरा, गले मिले तब अक्कड़-मक्कड़ खत्म हो गया धूल में धक्कड़!

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