याने सिर्फ़ चड्डी पहने था और बनियान एकदम निकल पड़ना मुमकिन नहीं था और वह कोई ऐसा बमबारी भूचाल या आसमानी सुलतानी का दिन नहीं था...
झुर्रियों से भरता हुआ मेरा चेहरा पहरा बन गया है मानो तरुण मेरी इच्छाओं पर बरबस रुक जाता हूँ...
बहुत नहीं थे सिर्फ चार कौए थे काले उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले उनके ढंग से उड़ें, रुकें, खायें और गायें वे जिसको त्योहार कहें सब उसे मनायें।...
एक सीध में दूर-दूर तक गड़े हुए ये खंभे किसी झाड़ से थोड़े नीचे, किसी झाड़ से लम्बे। कल ऐसे चुपचाप खड़े थे जैसे बोल न जानें किन्तु सबेरे आज बताया मुझको मेरी माँ ने -...
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़, दोनों मूरख, दोनों अक्खड़, हाट से लौटे, ठाठ से लौटे, एक साथ एक बाट से लौटे।...
जीभ की ज़रूरत नहीं है क्योंकि कहकर या बोलकर मन की बातें ज़ाहिर करने की सूरत नहीं है...
तारों से भरा आसमान ऊपर हृदय से हरा आदमी भू पर होता रहता हूं रोमांचित वह देख कर यह छूकर।...
लाओ अपना हाथ मेरे हाथ में दो नए क्षितिजों तक चलेंगे हाथ में हाथ डालकर सूरज से मिलेंगे...
बूंद टपकी एक नभ से किसी ने झुक कर झरोखे से कि जैसे हंस दिया हो हंस रही-सी आंख ने जैसे...
पहले इतने बुरे नहीं थे तुम याने इससे अधिक सही थे तुम किन्तु सभी कुछ तुम्ही करोगे इस इच्छाने अथवा और किसी इच्छाने, आसपास के लोगोंने...
बुनी हुई रस्सी को घुमायें उल्टा तो वह खुल जाती हैं और अलग अलग देखे जा सकते हैं उसके सारे रेशे...
तुमने जो दिया है वह सब हवा है प्रकाश है पानी है छन्द है गन्ध है वाणी है उसी के बल पर लहराता हूँ...
अब क्या होगा इसे सोच कर, जी भारी करने मे क्या है, जब वे चले गए हैं ओ मन, तब आँखें भरने मे क्या है, जो होना था हुआ, अन्यथा करना सहज नहीं हो सकता, पहली बातें नहीं रहीं, तब रो रो कर मरने मे क्या है?...
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले, उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले उनके ढंग से उड़े,, रुकें, खायें और गायें वे जिसको त्यौहार कहें सब उसे मनाएं...
काफ़ी दिन हो गये लगभग छै साल कहो तब से एक कोशिश कर रहा हूँ मगर होता कुछ नहीं है...