Page 1 of 5

मैं कुछ दिनों से एक विचित्र सम्पन्नता में पड़ा हूँ संसार का सब कुछ ...

कला वह है जो सत्य के अनुरूप हो और उठानेवाली हो...

कोई अलौकिक ही कला हो किसी के पास तो अलग बात है नहीं तो साधारणतया...

रात को दिन को अकेले में और मेले में तुम ...

याने सिर्फ़ चड्डी पहने था और बनियान एकदम निकल पड़ना मुमकिन नहीं था और वह कोई ऐसा बमबारी भूचाल या आसमानी सुलतानी का दिन नहीं था...

आडम्बर में समाप्त न होने पाए पवित्रता और समाप्त न होने पाए...

हम रात देर तक बात करते रहे जैसे दोस्त बहुत दिनों के बाद...

झुर्रियों से भरता हुआ मेरा चेहरा पहरा बन गया है मानो तरुण मेरी इच्छाओं पर बरबस रुक जाता हूँ...

हवा मेरे घर का चक्कर लगाकर अभी वन में चली जाएगी भेजेगी मन तक...

बहुत नहीं थे सिर्फ चार कौए थे काले उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले उनके ढंग से उड़ें, रुकें, खायें और गायें वे जिसको त्योहार कहें सब उसे मनायें।...

मन में जगह है जितनी उस सब में मैंने फूल की...

होने को सिर्फ़ दो हैं हम मगर कम नहीं होते दो...

एक सीध में दूर-दूर तक गड़े हुए ये खंभे किसी झाड़ से थोड़े नीचे, किसी झाड़ से लम्बे। कल ऐसे चुपचाप खड़े थे जैसे बोल न जानें किन्तु सबेरे आज बताया मुझको मेरी माँ ने -...

मैं जो हूँ मुझे वहीं रहना चाहिए। यानी वन का वृक्ष...

मुझे पंछी बनाना अबके या मछली या कली और बनाना ही हो आदमी...

भई, सूरज ज़रा इस आदमी को जगाओ! भई, पवन ज़रा इस आदमी को हिलाओ!...

अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़, दोनों मूरख, दोनों अक्खड़, हाट से लौटे, ठाठ से लौटे, एक साथ एक बाट से लौटे।...

जीभ की ज़रूरत नहीं है क्योंकि कहकर या बोलकर मन की बातें ज़ाहिर करने की सूरत नहीं है...

तारों से भरा आसमान ऊपर हृदय से हरा आदमी भू पर होता रहता हूं रोमांचित वह देख कर यह छूकर।...

सो जाओ आशाओं सो जाओ संघर्ष पूरे एक वर्ष ...

लाओ अपना हाथ मेरे हाथ में दो नए क्षितिजों तक चलेंगे हाथ में हाथ डालकर सूरज से मिलेंगे...

बूंद टपकी एक नभ से किसी ने झुक कर झरोखे से कि जैसे हंस दिया हो हंस रही-सी आंख ने जैसे...

तुमसे मिलकर ऐसा लगा जैसे कोई पुरानी और प्रिय किताब एकाएक फिर हाथ लग गई हो...

पहले इतने बुरे नहीं थे तुम याने इससे अधिक सही थे तुम किन्तु सभी कुछ तुम्ही करोगे इस इच्छाने अथवा और किसी इच्छाने, आसपास के लोगोंने...

मेरे चलने से हुए हो तुम पथ और...

सपनों का क्या करो कहाँ तक मरो इनके पीछे कहाँ-कहाँ तक...

अपमान का इतना असर मत होने दो अपने ऊपर सदा ही...

भले आदमी रुक रहने का पल अभी नहीं आया बीज जिस फल के लिए...

हम रात-भर तैरेंगे और अगर डूब नहीं गए...

तय करके नहीं लिख सकते आप तय करके लिखेंगे तो आप जो कुछ लिखेंगे...

मुझे पंछी बनाना अब के या मछली या कली और बनाना ही हो आदमी...

जहाँ-जहाँ उपस्थित हो तुम वहाँ-वहाँ बंजर...

समझ में आ जाना कुछ नहीं है भीतर समझ लेने के बाद एक बेचैनी होनी चाहिए...

बुनी हुई रस्सी को घुमायें उल्टा तो वह खुल जाती हैं और अलग अलग देखे जा सकते हैं उसके सारे रेशे...

तुमने जो दिया है वह सब हवा है प्रकाश है पानी है छन्द है गन्ध है वाणी है उसी के बल पर लहराता हूँ...

अब क्या होगा इसे सोच कर, जी भारी करने मे क्या है, जब वे चले गए हैं ओ मन, तब आँखें भरने मे क्या है, जो होना था हुआ, अन्यथा करना सहज नहीं हो सकता, पहली बातें नहीं रहीं, तब रो रो कर मरने मे क्या है?...

बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले, उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले उनके ढंग से उड़े,, रुकें, खायें और गायें वे जिसको त्यौहार कहें सब उसे मनाएं...

काफ़ी दिन हो गये लगभग छै साल कहो तब से एक कोशिश कर रहा हूँ मगर होता कुछ नहीं है...

कई बार लगता है अकेला पड़ गया हूँ साथी-संगी विहीन क्या हाने हनूँगा...

तुम तो जब कुछ रचोगे तब बचोगे मैं नाश की संभावना से रहित...