उसे क्या नाम दूँ
उसे क्या नाम दूँ जिसे मैंने अपनी बुद्धि के अँधेरे में देखा नहीं छुआ जिसने मेरे छूने का जवाब छूने से दिया और जिसने मेरी चुप्पी पर अपनी चुप्पी की मोहर लगाई जिसने मेरी बुद्धि के अँधेरे पर मेरे मन की अँधेरे की तहों पर तहें जमाईं और फिर जगा दिया मुझे ऐसे एक दिन में जिसमें आकाश तारों से भी भरा था वातावरण जिसमें दूब की तरह हरा था और कोमल!

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