पीताभ किरन-पंछी
दूसरे सारे पंछी अपने सारे गीत गा चुके हैं रक्त और नील सारे फूल मेरे आँगन में आ चुके हैं सुनाई नहीं दी एक तुम्हारी ही बोली ओ पीताभ किरण पंछी ओ ठीक कविता की सहोदरा फूल और गीत और धरा सब जैसे धाराहत हैं इस घटना से अनुक्षण रत हैं सब तुम्हारी प्रतीक्षा में !

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