उसी चमन में चलें जश्न-ए-याद-ए-यार करें दिलों को चाक गरेबाँ को तार-तार करें शमीम-ए-पैरहन-ए-यार क्या निसार करें तुझी को दिल से लगा लें तुझी को प्यार करें...
साज़ आहिस्ता ज़रा गर्दिश-ए-जाम आहिस्ता जाने क्या आए निगाहों का पयाम आहिस्ता चाँद उतरा कि उतर आए सितारे दिल में ख़्वाब में होंटों पे आया तिरा नाम आहिस्ता...
शब की तारीकी में इक और सितारा टूटा तौक़ तोड़े गए टूटी ज़ंजीर जगमगाने लगा तर्शे हुए हीरे की तरह आदमिय्यत का ज़मीर...
कुछ सुनने की ख़्वाहिश कानों को कुछ कहने का अरमाँ आँखों में गर्दन में हमाइल होने की बेताब तमन्ना बाँहों में मुश्ताक़ निगाहों की ज़द से नज़रों का हया से झुक जाना इक शौक़-ए-हम-आग़ोशी पिन्हाँ इन नीची भीगी पलकों में...
ऐ जान-ए-नग़्मा जहाँ सोगवार कब से है तिरे लिए ये ज़मीं बे-क़रार कब से है हुजूम-ए-शौक़ सर-ए-रहगुज़ार कब से है गुज़र भी जा कि तिरा इंतिज़ार कब से है...
यहीं की थी मोहब्बत के सबक़ की इब्तिदा मैं ने यहीं की जुरअत-ए-इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ मैं ने यहीं देखे थे इश्वा-ए-नाज़ ओ अंदाज़-ए-हया मैं ने यहीं पहले सुनी थी दिल धड़कने की सदा मैं ने...
इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे दिल के अँगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे हिज्र में मिलने शब-ए-माह के ग़म आए हैं चारासाज़ों को भी बुलवाओ कि कुछ रात कटे...
प्यार से आँख भर आती है कँवल खिलते हैं जब कभी लब पे तिरा नाम-ए-वफ़ा आता है दश्त की रात में बारात यहीं से निकली राग की रंग की बरसात यहीं से निकली...
करोड़ों बरस की पुरानी कुहन-साल दुनिया ये दुनिया भी क्या मस्ख़री है नए साल की शाल ओढ़े...
कुछ क़ौस-ए-क़ुज़ह से रंगत ली कुछ नूर चुराया तारों से बिजली से तड़प को माँग लिया कुछ कैफ़ उड़ाया बहारों से फूलों से महक शाख़ों से लचक और मंडवों से ठंडा साया जंगल की कुँवारी कलियों ने दे डाला अपना सरमाया...
मुबारक तुझे ओ ज़मीं के मुसाफ़िर ज़मीन-ओ-ज़माँ की हदें तोड़ कर आसमानों पे जाना हवाओं से आगे ख़लाओं से आगे...
नवा-ए-दर्द मिरी कहकशाँ में डूब गई वो चाँद तारों की सैल-ए-रवाँ में डूब गई समन-बरान-ए-फ़लक ने शरर को देख लिया ज़मीन वालों के दिल को नज़र को देख लिया...
रात भर दीदा-ए-नमनाक में लहराते रहे साँस की तरह से आप आते रहे जाते रहे ख़ुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगा अपना अरमान बर-अफ़गन्दा-नक़ाब आएगा ...
एक था शख़्स ज़माना था कि दीवाना बना एक अफ़्साना था अफ़्साने से अफ़्साना बना इक परी-चेहरा कि जिस चेहरे से आईना बना दिल कि आईना-दर-आईना परी-ख़ाना बना...
सहर से रात की सरगोशियाँ बहार की बात जहाँ में आम हुई चश्म-ए-इन्तिज़ार की बात दिलों की तिश्नगी जितनी दिलों का ग़म जितना उसी क़दर है ज़माने में हुस्न-ए-यार की बात...
निकले दहान-ए-तोप से बर्बादियों के राग बाग़-ए-जहाँ में फैल गई दोज़ख़ों की आग क्यूँ टिमटिमा रही है ये फिर शम-ए-ज़िंदगी फिर क्यूँ निगार-ए-हक़ पे हैं आसार-ए-बेओगी...
अब कहाँ जा के ये समझाएँ कि क्या होता है एक आँसू जो सर-ए-चश्म-ए-वफ़ा होता है इस गुज़रगाह में इस दश्त में ऐ जज़्बा-ए-इश्क़ जुज़ तिरे कौन यहाँ आबला-पा होता है...
मैं आफ़्ताब पी गया हूँ साँस और बढ़ गई है तिश्नगी ही तिश्नगी तू सर-ज़मीन-ए-इत्र-ओ-नूर से उतर के...
कैसे हैं ख़ानक़ाह में अर्बाब-ए-ख़ानक़ाह किस हाल में है पीर-ए-मुग़ाँ देखते चलें...
इक चमेली के मंडवे-तले मय-कदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर दो बदन प्यार की आग में जल गए...
मंज़िलें इश्क़ की आसाँ हुईं चलते चलते और चमका तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा आख़िर-ए-शब...
फिर छिड़ी रात बात फूलों की रात है या बरात फूलों की फूल के हार फूल के गजरे शाम फूलों की रात फूलों की...
ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए जिलौ में चाँदनी रातों का एहतिमाम लिए चटक रही है किसी याद की कली दिल में नज़र में रक़्स-ए-बहाराँ की सुब्ह-ओ-शाम लिए...
चश्म ओ रुख़्सार के अज़़कार को जारी रक्खो प्यार के नामे को दोहराओ कि कुछ रात कटे...
वस्ल है उन की अदा हिज्र है उन का अंदाज़ कौन सा रंग भरूँ इश्क़ के अफ़्सानों में...
रोज़-ए-रौशन जा चुका, हैं शाम की तय्यारियाँ उड़ रही हैं आसमाँ पर ज़ाफ़रानी साड़ियाँ शाम रुख़्सत हो रही है रात का मुँह चूम कर हो रही हैं चर्ख़ पर तारों में कुछ सरगोशियाँ...
खेलता था जब लड़कपन से तिरा रंगीं शबाब हट रही थी माह-ए-आलम-ताब के रुख़ से नक़्क़ाब ज़िंदगी थी हुस्न-ए-नौ आग़ाज़ का रंगीन ख़्वाब याद है वो नौजवानी का ज़माना याद है...
गुलू-ए-यज़दाँ में नोक-ए-सिनाँ भी टूटी है कशाकश-ए-दिल-ए-पैग़मबराँ भी टूटी है सराब है कि हक़ीक़त नज़ारा कि फ़रेब यक़ीं भी टूटा है तर्ज़-ए-गुमाँ भी टूटी है...
ज़िंदगी मोतियों की ढलकती लड़ी ज़िंदगी रंग-ए-गुल का बयाँ दोस्तो गाह रोती हुई गाह हँसती हुई मेरी आँखें हैं अफ़्साना-ख़्वाँ दोस्तो है उसी के जमाल-ए-नज़र का असर ज़िंदगी ज़िंदगी है सफ़र है सफ़र साया-ए-शाख़-ए-गुल शाख़-ए-गुल बन गया बन गया अब्र अब्र-ए-रवाँ दोस्तो...