अपना शहर
ये शहर अपना अजब शहर है कि रातों में सड़क पे चलिए तो सरगोशियाँ सी करता है वो ला के ज़ख़्म दिखाता है राज़-ए-दिल की तरह दरीचे बंद गुल चुप निढाल दीवारें किवाड़ मोहर-ब-लब घरों में मय्यतें ठहरी हुई हैं बरसों से किराए पर

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