मुलाक़ात
मैं आफ़्ताब पी गया हूँ साँस और बढ़ गई है तिश्नगी ही तिश्नगी तू सर-ज़मीन-ए-इत्र-ओ-नूर से उतर के आफ़्ताब बन के आ गई बिलोर का जहाज़ अब्र से परे रवाँ रवाँ इधर अँधेरी रात है शफ़क़ की तेग़-ए-सुर्ख़ उस तरफ़ तमाम आसमाँ शहाब ही शहाब है गुलाल ही गुलाल है सितारा हम-नशीं है माह हम-नफ़स है साज़-ए-जाँ-नवाज़ साथ है गुरेज़-पा सफ़र का एक एक पल है जावेदाँ इलाही ये सफ़र कभी न ख़त्म हो

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