Makhdoom Mohiuddin
( 1908 - 1969 )

Makhdoom Mohiuddin (Hindi: मख़दूम मुहिउद्दीन), or Abu Sayeed Mohammad Makhdoom Mohiuddin Khudri, was an Urdu poet and Marxist political activist of India. He was a distinguished revolutionary Urdu poet. He founded the Progressive Writers Union in Hyderabad and was active with the Comrades Association and the Communist Party of India, and at the forefront of the 1946–1947 Telangana Rebellion against the Nizam of the erstwhile Hyderabad state. More

इस शहर में इक आहू-ए-ख़ुश-चश्म से हम को कम कम ही सही निस्बत-ए-पैमाना रही है ...

रात भर दीदा-ए-नमनाक में लहराते रहे साँस की तरह से आप आते रहे जाते रहे ख़ुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगा अपना अरमान बर-अफ़गन्दा-नक़ाब आएगा ...

गुलू-ए-यज़दाँ में नोक-ए-सिनाँ भी टूटी है कशाकश-ए-दिल-ए-पैग़मबराँ भी टूटी है सराब है कि हक़ीक़त नज़ारा है कि फ़रेब यक़ीं भी टूटा है तर्ज़-ए-गुमाँ भी टूटी है...

सहर से रात की सरगोशियाँ बहार की बात जहाँ में आम हुई चश्म-ए-इन्तिज़ार की बात दिलों की तिश्नगी जितनी दिलों का ग़म जितना उसी क़दर है ज़माने में हुस्न-ए-यार की बात...

दराज़ है शब-ए-ग़म सोज़-ओ-साज़ साथ रहे मुसाफ़िरो मय-ए-मीना-गुदाज़ साथ रहे क़दम क़दम पे अँधेरों का सामना है यहाँ सफ़र कठिन है दम-ए-शो'ला-साज़ साथ रहे...

तुम गुलिस्ताँ से गए हो तो गुलिस्ताँ चुप है शाख़-ए-गुल खोई हुई मुर्ग़-ए-ख़ुश-इल्हाँ चुप है उफ़ुक़-ए-दिल पे दिखाई नहीं देती है धनक ग़म-ज़दा मौसम-ए-गुल अब्र-ए-बहाराँ चुप है...

ज़िंदगी मोतियों की ढलकती लड़ी ज़िंदगी रंग-ए-गुल का बयाँ दोस्तो गाह रोती हुई गाह हँसती हुई मेरी आँखें हैं अफ़्साना-ख़्वाँ दोस्तो है उसी के जमाल-ए-नज़र का असर ज़िंदगी ज़िंदगी है सफ़र है सफ़र साया-ए-शाख़-ए-गुल शाख़-ए-गुल बन गया बन गया अब्र अब्र-ए-रवाँ दोस्तो...

आप की याद आती रही रात भर चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर...

आज हो जाने दो हर एक को बद-मस्त-ओ-ख़राब आज एक एक को पिलवाओ कि कुछ रात कटे...

चश्म ओ रुख़्सार के अज़़कार को जारी रक्खो प्यार के नामे को दोहराओ कि कुछ रात कटे...