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जाने, किधर से चुपचाप आकर हाथी सामने लेट गए हैं, जाने किधर से...

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम मैं उनको करता हूँ प्रणाम । कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;...

वो गया वो गया बिल्कुल ही चला गया पहाड़ की ओट में...

सोनिया समन्दर सामने लहराता है जहाँ तक नज़र जाती है,...

समुद्र के तट पर सीपी की पीठ पर तरंगित रेखाओं की बहुरंगी अल्पना, हलकी! ऊपर औंधा आकाश...

अपने खेत में.... जनवरी का प्रथम सप्ताह खुशग़वार दुपहरी धूप में... इत्मीनान से बैठा हूँ........

उषा की लाली में अभी से गए निखर हिमगिरि के कनक शिखर आगे बढ़ा शिशु रवि ...

रमा लो मांग में सिन्दूरी छलना... फिर बेटी विज्ञापन लेने निकलना... तुम्हारी चाची को यह गुर कहाँ था मालूम! हाथ न हुए पीले...

जिनके बूटों से कीलित है, भारत माँ की छाती जिनके दीपों में जलती है, तरुण आँत की बाती ताज़ा मुंडों से करते हैं, जो पिशाच का पूजन है अस जिनके कानों को, बच्चों का कल-कूजन...

भुक्खड़ के हाथों में यह बन्दूक कहाँ से आई एस० डी० ओ० की गुड़िया बीबी सपने में घिघियाई बच्चे जागे, नौकर जागा, आया आई पास साहेब थे बाहर, घर में बीमार पड़ी थी सास...

"वो इधर से निकला उधर चला गया" वो आँखें फैलाकर बतला रहा था-...

काले-काले ऋतु-रंग काली-काली घन-घटा काले-काले गिरि श्रृंग काली-काली छवि-छटा ...

सुबह-सुबह तालाब के दो फेरे लगाए सुबह-सुबह रात्रि शेष की भीगी दूबों पर...

क्या नहीं है इन घुच्ची आँखों में इन शातिर निगाहों में मुझे तो बहुत कुछ...

ॐ श‌ब्द ही ब्रह्म है.. ॐ श‌ब्द्, और श‌ब्द, और श‌ब्द, और श‌ब्द ॐ प्रण‌व‌, ॐ नाद, ॐ मुद्रायें ॐ व‌क्तव्य‌, ॐ उद‌गार्, ॐ घोष‌णाएं...

'गीतों के जादूगर का मैं छंदों से तर्पण करता हूँ ।' सच बतलाऊँ तुम प्रतिभा के ज्योतिपुत्र थे,छाया क्या थी, भली-भाँति देखा था मैंने, दिल ही दिल थे, काया क्या थी । जहाँ कहीं भी अंतर्मन से, ॠतुओं की सरगम सुनते थे,...

कालिदास! सच-सच बतलाना इन्दुमती के मृत्युशोक से अज रोया या तुम रोये थे? कालिदास! सच-सच बतलाना! ...

कर गई चाक तिमिर का सीना जोत की फाँक यह तुम थीं...

मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को, डंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को! जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दिखा! सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा!...