सुबह-सुबह
सुबह-सुबह तालाब के दो फेरे लगाए सुबह-सुबह रात्रि शेष की भीगी दूबों पर नंगे पाँव चहलकदमी की सुबह-सुबह हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए माघ की कड़ी सर्दी के मारे सुबह-सुबह अधसूखी पतइयों का कौड़ा तापा आम के कच्चे पत्तों का जलता, कड़ुवा कसैला सौरभ लिया सुबह-सुबह गँवई अलाव के निकट घेरे में बैठने-बतियाने का सुख लूटा सुबह-सुबह आंचलिक बोलियों का मिक्स्चर कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा सुबह-सुबह

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