मनुपुत्र दिगंबर
समुद्र के तट पर सीपी की पीठ पर तरंगित रेखाओं की बहुरंगी अल्पना, हलकी! ऊपर औंधा आकाश निविड़ नील! नीचे श्याम सलिल वारुणी सृष्टि! सबकुछ भूल तिरोहित कर सभी कुछ – अवचेतन मध्य खड़े रहेंगे मनुपुत्र दिगंबर पता नहीं, कब तक... पश्चिमाभिमुख।

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