फुहारों वाली बारिश
जाने, किधर से चुपचाप आकर हाथी सामने लेट गए हैं, जाने किधर से चुपचाप आकर हाथी सामने बैठ गए हैं ! पहाड़ों-जैसे अति विशाल आयतनोंवाले पाँच-सात हाथी सामने--बिल्कुल निकट जम गए हैं इनका परिमण्डल हमें बार-बार ललचाता रहेगा छिड़ने-छेड़ने के लिए सदैव बुलावा देता रहेगा ! लो, ये गिरी-कुंजर और भी विशाल होने लगे ! लो, ये दूर हट गए, लो, ये और भी पास आ रहे, लो, इनका लीलाधरी रूप और भी फैलता जा रहा, लेकिन, ये गुमसुम क्यों हैं ? अरे, इन्होंने तो ढक लिया अपने आपको हल्की-पतली पारदर्शी चादरों से झीने-झीने, 'लूज' झीनी-झीनी, लूज बिनावटवाली वो मटमैली ओढ़नी बादलों को ढक लेगी अब अब फुहारोंवाली बारिश होगी बड़ी-बड़ी बूँदें तो यह शायद कल बरसेंगे... शायद परसों... शायद हफ़्ता बाद...

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