पुलिस अफ़सर
जिनके बूटों से कीलित है, भारत माँ की छाती जिनके दीपों में जलती है, तरुण आँत की बाती ताज़ा मुंडों से करते हैं, जो पिशाच का पूजन है अस जिनके कानों को, बच्चों का कल-कूजन जिन्हें अँगूठा दिखा-दिखाकर, मौज मारते डाकू हावी है जिनके पिस्तौलों पर, गुंडों के चाकू चाँदी के जूते सहलाया करती, जिनकी नानी पचा न पाए जो अब तक, नए हिंद का पानी जिनको है मालूम ख़ूब, शासक जमात की पोल मंत्री भी पीटा करते जिनकी ख़ूबी के ढोल युग को समझ न पाते जिनके भूसा भरे दिमाग़ लगा रही जिनकी नादानी पानी में भी आग पुलिस महकमे के वे हाक़िम, सुन लें मेरी बात जनता ने हिटलर, मुसोलिनी तक को मारी लात अजी, आपकी क्या बिसात है, क्या बूता है कहिए सभ्य राष्ट्र की शिष्ट पुलिस है, तो विनम्र रहिए वर्ना होश दुरुस्त करेगा, आया नया ज़माना फटे न वर्दी, टोप न उतरे, प्राण न पड़े गँवाना

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