विज्ञापन सुंदरी
रमा लो मांग में सिन्दूरी छलना... फिर बेटी विज्ञापन लेने निकलना... तुम्हारी चाची को यह गुर कहाँ था मालूम! हाथ न हुए पीले विधि विहित पत्नी किसी की हो न सकीं चौरंगी के पीछे वो जो होटल है और उस होटल का वो जो मुच्छड़ रौबीला बैरा है ले गया सपने में बार-बार यादवपुर कैरियर पे लाद के कि आख़िर शादी तो होगी ही नहीं? मैं झूठ कहता हूँ? ओ, हे युग नन्दिनी विज्ञापन सुन्दरी, गलाती है तुम्हारी मुस्कान की मृदु मद्धिम आँच धन-कुलिश हिय-हम कुबेर के छौनों को क्या ख़ूब! क्या ख़ूब कर लाई सिक्योर विज्ञापन के आर्डर! क्या कहा? डेढ़ हज़ार? अजी, वाह, सत्रह सौ! सत्रह सौ के विज्ञापन? आओ, बेटी, आ जाओ, पास बैठो तफसील में बताओ... कहाँ-कहाँ जाना पड़ा? कै-कै बार? क्लाइव रोड? डलहौजी? चौरंगी? ब्रेबोर्न रोड? बर्बाद हुए तीन रोज़ : पाँच शामें ? कोई बात नहीं... कोई बात नहीं... आओ, आओ, तफ़सील में बतलाओ!

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