चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है सुर्मा तो कहवे कि दूद-ए-शोला-ए-आवाज़ है पैकर-ए-उश्शाक़ साज़-ए-ताला-ए-ना-साज़ है नाला गोया गर्दिश-ए-सैय्यारा की आवाज़ है...
है तमाशा-गाह-ए-सोज़-ए-ताज़ा हर यक उज़्व-ए-तन जूँ चराग़ान-ए-दिवाली सफ़-ब-सफ़ जलता हूँ मैं...
दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए क्या हुई ज़ालिम तिरी ग़फ़लत-शिआरी हाए हाए तेरे दिल में गर न था आशोब-ए-ग़म का हौसला तू ने फिर क्यूँ की थी मेरी ग़म-गुसारी हाए हाए...
हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले...
लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती चमन ज़ंगार है आईना-ए-बाद-ए-बहारी का हरीफ़-ए-जोशिश-ए-दरिया नहीं खुद्दारी-ए-साहिल जहाँ साक़ी हो तू बातिल है दावा होशियारी का...
उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए बैठा रहा अगरचे इशारे हुआ किए दिल ही तो है सियासत-ए-दरबाँ से डर गया मैं और जाऊँ दर से तिरे बिन सदा किए...
वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार यानी ये मेरी आह की तासीर से न हो अपने को देखता नहीं ज़ौक़-ए-सितम को देख आईना ता-कि दीदा-ए-नख़चीर से न हो...
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़ अक़्ल कहती है कि वो बे-मेहर किस का आश्ना ज़र्रा ज़र्रा साग़र-ए-मै-ख़ाना-ए-नै-रंग है गर्दिश-ए-मजनूँ ब-चश्मक-हा-ए-लैला आश्ना...
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन वर्ना हम छेड़ेंगे रख कर उज़्र-ए-मस्ती एक दिन...
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है...
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए सर्फ़-ए-बहा-ए-मय हुए आलात-ए-मय-कशी थे ये ही दो हिसाब सो यूँ पाक हो गए...
कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में ये सू-ए-ज़न है साक़ी-ए-कौसर के बाब में हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद गुस्ताख़ी-ए-फ़रिश्ता हमारी जनाब में...
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता...
क़यामत है कि होवे मुद्दई का हम-सफ़र 'ग़ालिब' वो काफ़िर जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाए है मुझ से...
ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की फ़लक का देखना तक़रीब तेरे याद आने की खुलेगा किस तरह मज़मूँ मिरे मक्तूब का या रब क़सम खाई है उस काफ़िर ने काग़ज़ के जलाने की...
नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है हम-नशीं मत कह कि बरहम कर न बज़्म-ए-ऐश-ए-दोस्त वाँ तो मेरे नाले को भी ए'तिबार-ए-नग़्मा है...