आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए मुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का

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