ग़ैर को या रब वो क्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ी करे
ग़ैर को या रब वो क्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ी करे गर हया भी उस को आती है तो शरमा जाए है

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